
कभी एक खामोश संगठन, आज दुनिया की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसी। नाम है – मोसाद। कोई खुलेआम नहीं बोलता, लेकिन सब इसका नाम सुनते ही सतर्क हो जाते हैं। यह वो एजेंसी है जो दुश्मन को ज़िंदा नहीं छोड़ती, और जिसे काम करना आता है – बिना नाम छोड़े।
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1949 में इज़रायल की आज़ादी के बाद जब दुनिया में उसके अस्तित्व को ही चुनौती मिल रही थी, तब इस छोटे से देश ने एक ऐसा खुफिया संगठन खड़ा किया जिसने आने वाले दशकों में कोवर्ट ऑपरेशन्स (फाल्स फ्लैग मिशन) का चेहरा ही बदल डाला।
मोसाद ने बताया कि बदला कैसे लिया जाता है, टारगेट को ट्रैक कैसे किया जाता है, और जब मारा जाता है तो पूरी दुनिया दहल क्यों जाती है।
चलिए, जानिए उस ‘मौन हत्यारे’ की पूरी कहानी — जिसके निशाने से कोई नहीं बचा, और जिसकी हसीनाएं भी मौत का पैगाम बन जाती हैं।
इज़रायल की आज़ादी और मोसाद का जन्म
13 दिसंबर 1949 को, इज़रायल के पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियन ने एक ऐसा संगठन बनाया जिसे आज पूरी दुनिया “मोसाद” के नाम से जानती है। यह गठन कोई साधारण प्रक्रिया नहीं थी। उस समय इज़रायल के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय यहूदी उग्रवादी संगठनों — हगानाह, इरगुन, लेही और पालमच — को एक साथ मिलाकर एक सशक्त खुफिया तंत्र खड़ा किया गया।
पहले निदेशक बने रूवेन शिलोह। समय के साथ, मोसाद एक ऐसी ताकत बन गया जिसे अब अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी जैसे देश भी खुफिया सलाह के लिए संपर्क करते हैं।
गोल्डा मेयर और ‘ईश्वर का कहर’ वाला बदला
1972 का म्यूनिख ओलंपिक, जहां दुनिया जश्न मना रही थी, वहीं 11 इजरायली खिलाड़ियों की हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हमले की जिम्मेदारी ब्लैक सेप्टेंबर और PLO पर गई। तब की प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर ने इसका करारा जवाब देने का निर्णय लिया — ऑपरेशन व्रैथ ऑफ गॉड (ईश्वर का कहर)।
ऑपरेशन व्रैथ ऑफ गॉड: आतंक के खिलाफ एक-एक गोली
इस ऑपरेशन के तहत मोसाद ने 11 खिलाड़ियों की हत्या के दोषियों को दुनिया के कोने-कोने से ढूंढकर मारा। एक टारगेट को मारने से पहले मोसाद एजेंट उसके परिवार को एक गुलदस्ता भेजते जिसमें लिखा होता – “हम न भूलते हैं, न माफ करते हैं।” हर टारगेट को 11 गोलियां मारी जाती थीं – प्रत्येक मारे गए खिलाड़ी की ओर से एक।
दुबई में मारा गया हथियार सप्लायर: महमूद अल मबूह
19 जनवरी 2010, दुबई का अल बुस्तान रोताना होटल। यहाँ हमास के लिए हथियार सप्लाई करने वाले महमूद अल मबूह की रहस्यमयी हत्या हुई। जांच में पता चला कि मोसाद के हिट स्क्वॉड ने उसे पहले लकवा का इंजेक्शन देकर पंगु किया और फिर तकिये से दम घोंट दिया।
अभियान इतना गोपनीय था कि दुबई पुलिस को 10 दिन बाद पता चला कि यह मर्डर था, हादसा नहीं। मिशन में शामिल थीं मोसाद की महिला एजेंट्स, जो अपनी खूबसूरती और चालाकी दोनों के लिए मशहूर हैं।
अबू जिहाद की हत्या: 70 गोलियों की सजा
अबू जिहाद, उर्फ खलील अल वज़ीर, यासिर अराफात का सबसे करीबी और फिलिस्तीनी आतंकी गतिविधियों का मास्टरमाइंड था। 1988 में ट्यूनिशिया में छिपे अबू जिहाद को मोसाद ने 30 एजेंट्स के ज़रिए मारा, और वो भी उसके परिवार के सामने।
एक इजरायली बोइंग 707 प्लेन ने आकाश से ऑपरेशन को मॉनिटर किया। अबू जिहाद को 70 गोलियां मारी गईं — ताकि कोई भ्रम न रहे कि ये इत्तेफाक था।
ऑपरेशन थंडरबोल्ट: सिर्फ 53 मिनट में रचा इतिहास
1976 में, उगांडा के एंटबी एयरपोर्ट पर एक इजरायली प्लेन को हाईजैक कर लिया गया। आतंकियों की मांग थी कि 53 कैद आतंकी रिहा किए जाएं।
इज़राइल सरकार ने मोसाद के साथ मिलकर ऑपरेशन थंडरबोल्ट की योजना बनाई। रात के अंधेरे में सी-130 प्लेन में 100 से ज्यादा कमांडो एंटबी पहुंचे।
सिर्फ 53 मिनट में बंधकों को छुड़ाया गया, आतंकियों को मार गिराया गया। इस मिशन में योनतन नेतन्याहू (वर्तमान पीएम नेतन्याहू के भाई) शहीद हो गए। लेकिन यह ऑपरेशन दुनिया के लिए संदेश था — इज़राइल अपने नागरिकों को छोड़ता नहीं।
मोसाद और हसीनाएं: खूबसूरती के पीछे खतरनाक दिमाग
1986 में मोसाद ने महिला एजेंट्स की भर्ती शुरू की। आज मोसाद की लगभग आधी जनशक्ति महिलाएं हैं। ये महिलाएं अपने टारगेट्स से फ्लर्ट करती हैं, पर कभी शारीरिक संबंध नहीं बनातीं। इनका उद्देश्य सिर्फ एक होता है — मिशन पूरा करना।
ये एजेंट्स अपने सौंदर्य, संवाद-कला और तेज़ दिमाग से दुश्मन को भ्रमित करती हैं और वक्त आने पर जान ले लेती हैं।
मोसाद — दोस्त के लिए देवता, दुश्मन के लिए काल
मोसाद कोई आम खुफिया एजेंसी नहीं है। यह इज़राइल की राष्ट्रीय आत्मा का प्रतिबिंब है। चाहे किसी खिलाड़ी की हत्या का बदला हो, चाहे आतंकियों को ट्रैक करना हो, या दुनिया के सबसे कठिन रेस्क्यू ऑपरेशन — मोसाद हर जगह अपने टारगेट पर सटीक वार करती है